Ala Hazrat Naat आला हज़रात नात पेशे लफ्ज़

Ala Hazrat Naat अला हज़रात नात पेशे लफ्ज़

आ'ला हज़रत , इमामे अहले सुन्नत , मुजद्दिदे दीनो मिल्लत , मौलाना इमाम अहमद रज़ा खान  की जाते बा ब - रकात को अल्लाह , ने बे अन्दाज़ा उलूमे जलीला,

और अन गिनत सिफ़ाते हमीदा से नवाज़ा , आप ने मुख़्तलिफ़ मौज़ूआत पर कमो बेश एक हज़ार कुतुब तस्नीफ़ फ़रमाईं जिन से आप की फ़क़ाहत,

और तबह्हुरे इल्मी का अन्दाज़ा लगाना मुश्किल नहीं , जिस फ़न और जिस मौज़ूअ पर लिखा तहक़ीक़ व तदक़ीक़ के दरिया बहाए । 

अगर फ़न्ने शाइरी की बात की जाए तो इस में भी आप कमाले महारत रखते थे , शरीअत व अदब के दाएरे में रह कर,

और इश्क़ो मस्ती में डूब कर ना ' त गोई आप ही का तुर्रए इम्तियाज़ है बड़े बड़े नामवर शु- अरा इस मैदान में लग्ज़िशें खा गए , शरीअत की पासदारी,

और बारगाहे रिसालत का अदब न कर सके लेकिन आ ' ला हज़रत संह का कलाम सरासर अदब और पासदारिये शर - अ का नमूना है,

चुनान्चे आप अपने ना'तिया दीवान “ हृदाइके बख़्शिश " में फ़रमाते हैं : -


मल्फूज़ात शरीफ़ में है  कि आप फ़रमाते हैं : “ हक़ीक़तन ना’त शरीफ़ लिखना निहायत मुश्किल है जिस को लोग आसान समझते हैं , इस में तलवार की धार पर चलना है , 

अगर बढ़ता है तो उलूहिय्यत में पहुंचा जाता है और कमी - करता है तो तन्क़ीस ( या ' नी शान में कमी व गुस्ताखी ) होती है , 

अलबत्ता " हुम्द " आसान है कि इस में रास्ता साफ़ है जितना चाहे बढ़ सकता है । 

ग़रज़ " हम्द " में एक जानिब अस्लन हृद नहीं और " ना'त शरीफ़ " में दोनों जानिब सख़्त हुद बन्दी है । ' 

( मल्फूज़ाते आ'ला हज़रत , स . 227 , मक- त बतुल मदीना ) 


मा ' लूम हुवा ना'त गोई हर एक के बस की बात नहीं और येह भी समझ लेना चाहिये कि हर किसी का कलाम उठा कर पढ़ लेना भी दुरुस्त नहीं,

जब तक कि येह यक़ीन न हो कि येह कलाम शर - ई ग - लती से पाक है लिहाज़ा हो सके तो उ - लमा व बुजुर्गों का ही कलाम पढ़ा जाए कि इसी में आफ़िय्यत है , 

इस ज़िम्न में शैखे तरीक़त , अमीरे अहले सुन्नत , बानिये दा'वते इस्लामी हज़रत अल्लामा मौलाना अबू बिलाल मुहम्मद इल्यास अत्तार कादिरी ने एक मौक़अ पर ना ' त ख़्वां इस्लामी भाइयों को म - दनी फूल अता फ़रमाते हुए इर्शाद फ़रमाया : “ उर्दू कलाम सुनने के लिये मश्वरतन " ना ' ते रसूल " के सात हुरूफ़ की निस्बत से सात अस्माए गिरामी हाज़िर हैं 

( 1 ) इमामे अहले सुन्नत , मौलाना शाह इमाम अहमद रज़ा खानळ गळ ( हुदाइके बख़्शिश ) 

( 2 ) उस्ताजे ज़मन हज़रत मौलाना हुसन रज़ा खान ( जौके ना'त ) 

( 3 ) ख़लीफ़ए आ’लाहज़रत मद्दाहुल हबीब हज़रत मौलाना जमीलुर्रहमान र - ज़वी ( क़बालए बख़्शिश ) 

( 4 ) शहज़ादए आ'ला हज़रत , ताजदारे अहले सुन्नत हुज़ूर मुफ्तिये आ ' ज़मे हिन्द मौलाना मुस्तफ़ा रज़ा खान ( सामाने बख़्शिश ) 

( 5 ) शहज़ादए आ'ला हज़रत , हुज्जतुल इस्लाम हज़रते मौलाना हामिद रज़ा खान Jaile ( बयाज़े पाक ) 

( 6 ) ख़लीफ़ए आ'ला हज़रत सदरुल अफ़ाज़िल हज़रते अल्लामा मौलाना सय्यद - मुहम्मद नईमुद्दीन मुरादआबादी ( रियाजुन्नईम ) 

( 7 ) मुफस्सिरे शहीर हकीमुल उम्मत हज़रते मुफ़्ती अहमद यार खान ( दीवाने सालिक ) । " अल्लाह - हमें बुजुर्गाने दीन के फुयूज़ात से मुस्तफ़ीज़ फ़रमाए । आमीन 


तब्लीगे कुरआनो सुन्नत की आलमगीर गैर सियासी तहरीक दा'वते इस्लामी की मर्कज़ी मजलिसे शूरा के रुक्न,

और इन्तिज़ामी काबीना के निगरान साहिब के हुक्म पर लब्बैक कहते हुए , मजलिसे “ अल मदीनतुल इल्मिय्या " इमामे इश्क़ो महब्बत का चाश्निये इश्क़ से तर - बतर कलाम “ हृदाइके बख़्शिश " दौरे जदीद के तक़ाज़ों को मद्दे , 

नज़र रखते हुए बेहतर अन्दाज़ में शाएअ करने की सआदत हासिल कर रही है । इस से कुब्ल सय्यिदी आ'ला हज़रत कह के 

तर - ज - मए कुरआन “ कन्जुल ईमान " और " जहुल मुमतार " समेत पच्चीस 25 कुतुब शाएअ की जा चुकी हैं । 


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